आए दिन आप जिन जरूरी चीजों को खरीदना चाहते हैं, वह उतना ही महंगा होता जा रहा है, ऐसे में लोगों को शौक की चीजें हाथ से छूटती जा रही है। बचत के बारे में तो सोचना भी अभिशाप सा लगने लगा है। आम जनजीवन पर लगातार जरूरी चीजों की बढ़ती कीमत का असर भारी पड़ रहा है। वहीं देश में बेरोजगारी की दर (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी) के आंकड़ों के अनुसार इस साल अप्रैल माह को 7.97 फीसदी के मुकाबले मई में बढकर अपने 1 साल के उच्चतम स्तर यानी 11. 9 फ़ीसदी तक चली गई है, जो कि पहले से ही स्थिति खराब थी, फिर करोना की पहली लहर के बाद दूसरी लहर और अब लगातार महंगाई का असर दिन-व-दिन जरूरी चीजों के दाम खाद्य तेल, चावल, चीनी, मसालों, रसोई गैस आदि के साथ पेट्रोल-डीजल की बढ़ती हुई कीमत से यातायात भी महंगा हो गया है, और अब ताजा अपडेट के अनुसार दवा कंपनियों के द्वारा पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों का असर देखा जा रहा है, यह कंपनियां मालभाड़ा और कच्चे माल की लागत में इजाफा होने का हवाला देकर दवाओं के दाम बढ़ा रही है।
बढ़ती दवाओं के नाम इस प्रकार है – दर्द निवारक इंडोकैप एसआर 105 की जगह ₹115 में बिक रही है, कोलेस्ट्रोल की गोली रोजावेल 20 के दाम 303 थे और 330 है, मानसिक रोग की दवा ऑल लैंड- 2.5 दाम32 के बजाय 37 में बिक रही है, यूरिक एसिड की दवा फेबुस्टेट- 40 दाम 184 की जगह 202 में बिक रही है, गरारा की दबाव बीटाडीन 210 के बजाय 230 में बिक रही है, लिवर की दवा यूडिलिव 591 की जगह 631में बिक रही है एवं बीपी की दवा एंलोप्रेस 123की जगह 135 में मिल रही है।
दवाओं के दाम में बढ़ोतरी से लोगों की परेशानी काफी बढ़ गई है। लोगों में अब तक यह उम्मीद थी कि दवा महंगी नहीं होगी। वहीं स्वास्थ्य व्यवस्था की बात करें तो दवाई के अभाव में या अन्य स्वास्थ सुविधाओं के बिना पहले ही लोगों का इलाज इतना महंगा है कि इसके अभाव में लोगों की जाने तक चली जाती है। देश में गरीबी पहले से व्याप्त हैं। जहां जीवन जीने के लिए खाने पीने की जरूरी चीजें अनाज, फल, सब्जी के साथ ही लोगों का सपना घर बनाना भी और महंगा हो गया है। पहले कोरोना का कहर और अब महंगाई का असर लोगों की जीवन शैली पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहा, जिससे तनाव की स्थिति पैदा होने की संभावना बन सकती है। लोगों की उम्मीद सरकार से है कि वे इस और ध्यान दें एवं जल्द से जल्द पहल करें, जिससे महंगाई का बढ़ता बोझ कम हो सके, जो लोगों की सिरदर्दी बनी हुई है, उससे छुटकारा मिले, ताकि स्वस्थ दिमाग के साथ स्वस्थ विचार से स्वस्थ जीवन व्यतीत करने में सहायक हो सके।
लेखिका :- कौस्तुभा
अर्थशास्त्र, बी.एन.एम.यू, मधेपुरा, बिहार।