मधेपुरा/बिहार : शहर सिर्फ नगर परिषद का नहीं है, यह हमारा और आपका भी शहर है. इसे स्वच्छ एवं स्वस्थ रखना सभी की जिम्मेदारी है, लेकिन लोग अपने कर्तव्य को भूल कर, कभी नगर परिषद पर तो कभी जनप्रतिनिधियों पर ठीकरा फोड़कर, कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं. आम लोग से लेकर खास लोग, यह भूल जाते हैं कि उनके द्वारा फैलाए जा रहे कचरे को उन्हीं की तरह कोई मनुष्य साफ करता है. गली-गली में लोग आलीशान भवन बना रहे हैं, लेकिन सड़क पर सीढ़ी बनाना, पानी बहाना और गंदगी फैलाना अपनी शान समझते हैं. ऐसे में शहर को स्वच्छ, स्वस्थ एवं सुंदर बनाने का सपना सच नहीं हो सकता है. आरोप-प्रत्यारोप का दौर, स्वयं में बदलाव के बिना संभव नहीं है.
शहर के लोगों को लाना होगा खुद में बदलाव : स्वच्छ मधेपुरा, स्वस्थ मधेपुरा एवं सुंदर मधेपुरा का नारा भले ही पढ़ने को, देखने को एवं सुनने को मिले, लेकिन जब तक खुद में लोग बदलाव नहीं लायेंगे, तब तक यह नारा कागजों, फ्लेक्सों एवं बैनरों पर ही सुंदर लगेगा. शहर के लोग सफाई के बाद घर के कचरे को छत पर से ही सड़क पर गिरा देते हैं या कचरे को पॉलिथीन में बांधकर सड़क के दूसरे किनारे से घुमा कर दूसरे किनारे कचरा फेंक देते हैं या फिर घर का सारा कचरा उठाकर सड़क किनारे खुले में फेंक कर चले जाते हैं. इन सभी स्थितियों में कचरा उस सड़कों पर बिखर जाता है जिसके कारण लोगों को आवागमन में परेशानी होती है.
सिर्फ हाजिरी देने जैसा कार्य करते हैं नप के सफाई कर्मी : लोगों द्वारा सड़कों पर फेंके गए कचरे में खाद्य पदार्थ के साथ-साथ गीला कचरा भी होता है. सड़क किनारे कचरा फेंकने के बाद उसमें से खाद्य पदार्थ खाने को लेकर आवारा पशु उस पर टूट पड़ते हैं. गीला कचरा एवं सड़कों पर खाद्य पदार्थ बिखरे होने के कारण उसमें से इतनी भयानक और गंदी बदबू निकलती है कि उधर से लोगों का गुजरना भी कठिन हो जाता है. यह बदबू इतनी भयानक होती है कि नाक पर रुमाल रखना भी कम पड़ जाता है. नगर परिषद के सफाई कर्मी भी सिर्फ हाजिरी देने जैसा काम करते हैं. वे लोग ऊपर-ऊपर सूखा कचरा उठाकर, गीला कचरा उसी तरह सड़क किनारे छोड़ देते हैं. इन कचरों एवं गंदी बदबू से सुबह में घूमने निकले लोगों को काफी परेशानी होती है. दुकानदार एवं अन्य व्यवसायी रात में दुकान, होटल एवं अन्य प्रतिष्ठान को बंद कर घर चले जाते हैं. सुबह जब तक उनके प्रतिष्ठान का सटर उठता है, तब तक नगर परिषद के सफाई कर्मी सड़कों का कचरा उठाकर चले जाते हैं. जिसके बाद व्यवसायियों द्वारा प्रतिष्ठान से निकले कचरे को सड़क पर जमा कर, अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ लिया जाता है.
सड़क पर फैला कचरा बन गई है मधेपुरा की पहचान : शहर की सफाई के लिए नगर परिषद द्वारा सुबह कचरा का उठाव किया जाता है. सफाई कर्मी द्वारा मुख्य सड़क एवं वार्ड जमे कचरे को साफ किया जाता है. इसके अलावा सभी वार्डों में घर-घर से कचरा उठाने की व्यवस्था नगर परिषद द्वारा की गई है, लेकिन यह सफाई बहुत देर से की जाती है. तब तक सुबह टहलने वाले लोग इन परेशानियों से रूबरू होकर घर चले जाते हैं. सुबह में टहलना व शारीरिक कार्य करना स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है, मधेपुरा की सड़कों पर टहलना बीमारी का कारण बन सकती है. साथ ही सफाई के बाद सुबह जो वार्ड से लेकर मुख्य सड़क का नजारा देखने को मिलता है, वह कुछ देर बाद ही गायब हो जाता है. आधा-अधूरा ही सही लेकिन, सफाई के बाद लोगों के मन से अनायास निकल जाता है कि काश, शहर का ऐसा नजारा हमेशा देखने को मिलता रहे, लेकिन कुछ देर बाद ही सड़क पर फैला कचरा मधेपुरा की पहचान बन जाती है.
शहर से ज्यादा साफ दिखती है गांव की गली-मोहल्लों की सड़कें : ऐसी बात नहीं है कि सफाई के बाद गंदा फैलाने के लिए नगर परिषद के कर्मी आते हैं. गंदगी उसी समाज के लोग एवं व्यवसाय फैलाते हैं और जब नगर परिषद के कार्यों की चर्चा होती है तो लंबी-चौड़ी बातें कर, कभी नगर परिषद पर तो कभी स्थानीय जनप्रतिनिधि पर दोषारोपण कर, अपने कर्तव्य से पल्ला झाड़ लेते हैं. शहर के लोग दूसरे पर निर्भर हो चुके हैं. अपने कामों को दूसरों के कंधों पर छोड़ देते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा नहीं देखा जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में सफाई व्यवस्था हो या कचरा उठाने की व्यवस्था, इसके लिए ना ही नगर परिषद है और ना ही कोई एजेंसी कार्य करती है. बावजूद शहर के मोहल्लों व सड़कों से साफ गांव की सड़कें एवं टोली-मोहल्ले रहती है. गांव में रहने वाले आम से लेकर खास लोग तक स्वयं अपने घरों के आसपास सफाई करते हैं. यह ना ही किसी पर निर्भर होते हैं और ना ही किसी पर ठीकरा फोड़कर अपने कर्तव्यों से मुख मोड़ते हैं.