BNMU : नई शिक्षा नीति की चुनौतियों तथा क्रियान्वयन को लेकर सेमीनार का आयोजन

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मधेपुरा/बिहार : भारत की नई शिक्षा नीति, भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषित की गई है. यह शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरूआत है. हमें इसके सम्यक क्रियान्वयन के लिए विभिन्न स्तरों पर ठोस पहल करने की जरूरत है.

यह बात बीएनएमयू कुलपति प्रो डा राम किशोर प्रसाद रमण ने कही. वे शनिवार को भारतीय शिक्षण मंडल एवं नीति आयोग के संयुक्त सौजन्य से भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग में आयोजित सेमिनार में अध्यक्षीय अभिभाषण दे रहे थे. इसका विषय नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन : चुनौतियां एवं संभावनायें था. उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार के बीच सहयोग एवं समन्वय की जरूरत है. मौजूदा कानूनों में सुधार करने एवं कई नये कानूनों का निर्माण करना भी आवश्यक है. वित्तीय संसाधनों में वृद्धि एवं उसका समुचित प्रबंधन करने, पाठ्यक्रमों में बदलाव, नये शिक्षण संस्थानों की स्थापना एवं योग्य शिक्षकों की नियुक्ति एवं उनका समुचित प्रशिक्षण भी जरूरी है.

हमारी यहां प्राचीन शिक्षा पद्धति काफी विकसित थी और हम कहलाते थे विश्वगुरू : मुख्य अतिथि नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय डालटनगंज झारखंड के कुलपति प्रो डा राम लखन सिंह ने कहा कि युगों-युगों से भारत में गुरूकुल शिक्षा पद्धति चल रही थी. हमारी यहां प्राचीन शिक्षा पद्धति काफी विकसित थी और हम विश्वगुरू कहलाते थे. 1830 में केवल बिहार एवं बंगाल में एक लाख से अधिक गुरूकुल थे. अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति ने हमारी शिक्षा पद्धति को हाशिये पर ला खड़ा किया. विशेषकर 1835 में आई मैकाले की शिक्षा नीति ने भारतीय शिक्षा नीति को काफी नुकसान पहुंचाया. अब पुनः भारत एवं भारतीयता को केंद्र में रखकर एक शिक्षा नीति बनाई गई है. यह नई शिक्षा नीति वास्तव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति है. यह हमारी प्राचीन शिक्षा नीति को पुनः प्रतिष्ठत करने का प्रयास है. इस शिक्षा नीति का क्रियान्वयन हमारी मुख्य चुनौति है. इसके क्रियान्वयन के लिए हमें शिक्षण संस्थानों में आधारभूत संरचनाओं का विकास करना होगा एवं शिक्षकों की कमी दूर करनी होगी. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत की भाषा, संस्कृति एवं परिवेश पर काफी ध्यान दिया गया है. हम मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे और अपने परिवेश का प्रकटीकरण कर सकेंगे.

भारतीय जीवन मूल्यों को केंद्र में रखकर बनाई गई है नई शिक्षा नीति : भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो डा रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीय दर्शन एवं संस्कृति पर काफी ध्यान दिया गया है. यह भारतीय जीवन मूल्यों को केंद्र में रखकर बनाई गई है. नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर काफी ध्यान दिया गया है. मातृभाषा के माध्यम से ही सृजनात्मकता आती है. अन्य भाषाओं में सृजनशिलता नहीं आ पाती है. टीएस इलियट की तरह का कोई भारतीय अंग्रेजी में नहीं लिख पाया. संस्कृत में कालीदास, वाचस्पति मिश्र, मंडन मिश्र एवं गंगेश उपाध्याय की रचनाओं का काफी महत्व है. यदि ये लोग अंग्रेजी में लिखते तो शायद यह नहीं हो सकती थी. प्रति कुलपति प्रो डा आभा सिंह ने कहा कि भारत की मूल विशेषता उसकी आध्यात्मिकता है. आध्यात्मिकता एवं दर्शन ही रचनात्मकता का आधार है. नई शिक्षा नीति की यह बड़ी विशेषता है कि यह रटंत विद्या को छोड़कर रचनात्मकता पर जोर देती है. रचनात्मकता की शुरूआत बचपन से ही होती है. स्कूली शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

नई शिक्षा नीति भारत को पुनः शिक्षा के क्षेत्र में बनायेगी अग्रणी : कोलहन विश्वविद्यालय धनबाद झारखंड के डा सुशील कुमार तिवारी ने कहा कि शिक्षा में स्वदेशी भाव का जागरण ही इसका मुख्य उद्देश्य है. यह शिक्षा के क्षेत्र की सभी समस्याओं के सम्यक समाधान का प्रयास है. भारत में पुनः विश्व गुरु बनने की क्षमता है. नई शिक्षा नीति पुनः भारत को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बनायेगी. भारतीय शिक्षा का पुनरुत्थान करेगी एवं नालंदा, विक्रमशिला एवं तक्षशिला के गौरव को पुनः स्थापित करेगी. भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षक को आचार्य कहते हैं. हमारे यहां आचार्यों का महत्व राजाओं से भी अधिक था. इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल के ओमप्रकाश सिंह, मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो डा उषा सिन्हा, पूर्व डीएसडब्लू प्रो डा नरेंद्र श्रीवास्तव एवं अकादमिक निदेशक प्रो डा एमआई रहमान ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किये. कार्यक्रम की शुरुआत में पार्वती विज्ञान महाविद्यालय की हेमा कुमारी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया. अतिथियों का स्वागत शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज प्रो डा नरेश कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय निरीक्षक कला डा ललन प्रसाद अद्री ने की. संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डा सुधांशु शेखर ने किया.

इस अवसर पर डा जितेंद्र कुमार सिंह, डा विनय कुमार चौधरी, डा अरूण कुमार, डा राम सिंह यादव, शिक्षण मंडल के विस्तारक आनंद कुमार, शोधार्थी सौरभ कुमार, अमरेश कुमार अमर, सौरभ कुमार चौहान, माधव कुमार, संजीव कुमार, मुकेश कुमार, संतोष कुमार आदि उपस्थित थे.

अमित कुमार अंशु
उप संपादक

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