जनता के राष्ट्रपति डॉ कलाम की जयंती पर “द रिपब्लिकन टाइम्स” की अतिथि संपादक प्रसन्ना सिंह राठौर की ✍️से एक खास प्रस्तुति

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प्रसन्ना सिंह राठौर
अतिथि संपादक

डॉ कलाम नाम सुनते ही मानस पटल पर आकृति उत्पन होने लगती है एक ऐसे अद्भुत प्रतिभा के धनी भारतीय की जो न हिन्दू था न मुसलमान न ही कुछ और वह अगर कुछ था तो एक सच्चा भारतीय ।15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में जन्मे अबुल पाकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम का बचपन संघर्षों की गोद में बीता। उनके जीवन पर उनके माता – पिता के संस्कारों और संघर्ष के संग प्रारम्भिक शिक्षकों की अमिट निशानी थी। पिता के कार्यों में सहयोग करते हुए पेपर बेचकर उन्होंने अपनी पढ़ाई और घर के खर्च को चलाया। वर्ग पांच में अपने शिक्षक के एक उदाहरण से प्रभावित होकर उन्होंने विमान विज्ञान में जाने की ठानी।

अपनी प्रतिभा के बल पर वो डीआरडीओ, इसरो को लगभग चार दशक तक नेतृत्व देकर नई ऊंचाई पर ले गए। बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए उन्हें मिसाइल मेन भी कहा जाता है। पोखरण परमाणु परीक्षण में इनके निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनीतिक भूमिका आज भी याद की जाती है। वैज्ञानिकों के एक सम्मेलन में प्रसिद्ध रणनीतिकार और बीजेपी नेता प्रमोद महाजन ने पूछा कि आगे वैज्ञानिक को राष्ट्रपति बनाया जाए तो उनकी पसंद क्या होगी ?पूरे सदन ने एकमत से डॉ कलाम की वकालत की,यही वाक्या राष्ट्रपति के लिए उनके नाम के प्रस्तावित होने का आधार बना।कई नामों पर सहमति ,,असहमति  चल रही थी लेकिन ए पी जे अब्दुल कलाम का नाम पस्तावित होने के बाद आलम कुछ यूं था कि विपक्ष भी इनके नाम की मुख़ालपत नहीं कर सका। जब उनके नाम को प्रस्तावित करने के लिए उनकी सहमति ली गई तो उस समय वो अना वलाम विश्विद्यालय में पढ़ा रहे थे।जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल जी ने उनकी सहमति मांगी तब दो घंटे का समय लेकर उन्होंने अपनी सहमति दी।आगे चलकर वो मुल्क के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने  जन जन पर अपना प्रभाव स्थापित किया।छात्रों के लिए जहां उन्होंने राष्ट्रपति भवन को खुलवाया वहीं पहली बार राष्ट्रपति जनता के बीच पहुंचे ।

खासकर छात्रों से उन्होंने काफी संपर्क बनाया,उनसे मिलना प्रश्न करना,उनके प्रश्नों को सुलझाना उन्हें बेहद पसंद था।भारत रत्न,पद्म भूषण,पद्म विभूषण सहित अनेकानेक सम्मानों से सम्मानित डॉ कलाम जनता के सबसे प्रिय राष्ट्रपति थे और बच्चों के भी चाचा व काका कलाम के रूप में।राष्ट्रपति पद से हटने के बाद फिर से वो अध्यन व अध्यापन कार्य में जुट गए।शिलांग में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेते समय 27 जुलाई 2015 में उनकी मौत हुई।उनकी मौत की खबर सुन पूरा देश आवाक सा रह गया।कोई विश्वास करने को तैयार ही नहीं था कि सबके लाडले देश को विश्वशक्ति बनने का स्वपन दिखाने वाले डॉ कलाम नहीं रहे। तत्कालीन राष्ट्रपति ने जहां प्रोटोकॉल तोड़ते हुए इस महामानव को अपनी श्रद्धांजलि दी वहीं पूरे मुल्क ने जाति,धर्म आदि से उपर उठकर अपने लाडले को आखिरी विदाई दी।सादगी  और उच्च विचार के अद्भुत प्रतिभा डॉ कलाम की जब पूरी संपति सामने आई तो वो थी 2500 किताबें, 6कमीज़, 4 ट्राउजर, एक जोड़ी जूते और एक हाथ घड़ी। भारत रत्न डॉ कलाम के नाम पर स्थापित एशिया के सबसे बड़े तकनीकी विश्विद्यालय  डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम प्रावधिक विश्विद्यालय सहित अनेकों स्थल सहित अन्य उनके संकल्प को दर्शाएगा वहीं भारत को अपने सिद्धांतों के साथ विश्व शक्ति के मुकाम तक ले जाना ही उनका सच्चा सम्मान और उनके प्रति समर्पित श्रद्धांजलि होगी।उनकी जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र व “द रिपब्लिकन टाइम्स परिवार” की ओर से कोटि कोटि नमन।


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