इंतजार कब तक! 26 वर्षों से बंद पड़ा है मधुबन चीनी मिल  

तस्वीर : मधुबन गांव में वर्षों से बन्द पड़ा चीनी मिल
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कौनैन बशीर
वरीय उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : किसी जमाने में उदाकिशुनगंज अनुमंडल का यह मधुबन गाँव उद्योग धंधे के लिए जाना जाता था। इलाके के किसान समृद्धि की कहानी रचने लगे थे। यहां की फिजा में चीनी की मिठास भरी होती थी। किसानों में खुशी का संचार था। लेकिन, पिछले ढाई दशक से किसान अपनी उम्मीदों का जनाजा लिए फिर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं मधुबन चीनी मिल की। इसकी चिमनी से धुआं निकले जमाना हो गया । हजारों टन चीनी का उत्पादन करने वाली यह मिल आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है। वहीं मिल के सहारे अपने परिवार वालों की जिंदगी सँवारने वाले किसान मायूस हैं। इस मिल से न केवल मधुबन बल्कि मधेपुरा जिले के साथ-साथ पड़ोसी जिले के भी हजारों किसान की रोजी रोटी जुड़ी हुई थी।

तस्वीर : मधुबन गांव में वर्षों से बन्द पड़ा चीनी मिल

इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती थी। लेकिन, जब से मिल बंद हुई गन्ने की खेती भी घीरे-घीरे कम होने लगी। सूबे में सरकारें तो बदलीं लेकिन मिल फिर से चालू होने की उम्मीद अभी तक पूरी नहीं हुई। बस चुनाव के वक्त नेतागण घोषणा कर किसानों को सब्जबाग दिखाकर वोट ले लेते हैं और सत्ता पर काबिज होते ही उनकी घोषणा की हवा निकल गई। किसानों का आरोप है कि नीतीश सरकार में भी मधुबन गांव में चीनी मिल की चिमनी से धुआं नहीं निकला। धुआं देखने के लिए क्षेत्रवासी को और कितना इंतजार करना पड़ेगा, अब भी किसानों को पता नही।

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 बताया जाता है कि कभी चिमनी की धुआं इस क्षेत्र की फिजाओं में मिठास भरता था, किसानों का उल्लास बढ़ाता था। लेकिन, अब तो पूरे 26 वर्ष हो गये बावजूद इसके यहाँ के चीनी मिल के चिमनी से धुआं निकले। लिहाजा हजारों टन चीनी का उत्पादन करने वाला यह मिल आज भी अपनी दुर्दशा पर आंशु बहा रहा है। वहीं मिल के सहारे अपनी जिंदगी सुघारने वाले किसान आज भी मायूस है। बताया जाता है कि बनबंखी चीनी मिल बंद होने के बाद इस मिल से मधेपुरा जिला ही नही बल्कि पूर्णिया व मघुबनी सहित अन्य जिलों के हजारों किसान जुड़े गुए थे और इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती थी। लेकिन, जब से मिल बंद हुआ गन्ने की खेती भी घीरे-घीरे कम होने लगी। नीतीश सरकार ने बंद चीनी मिल को चालू करने की बात कही थी, जिससे इलाके के लोगों व किसानों में एक बार फिर आशा जगी थी। लेकिन, उस घोषणा की हवा निकल गई। 

तस्वीर : मधुबन गांव में वर्षों से बन्द पड़ा चीनी मिल

वर्ष 2006 में मिल शुरू करने की हुई थी पहल : सरकार ने भी उदाकिशुनगंज अनुमंडल के तीनटेंगा में चीनी मील लगाने की घोषणा की थी। लेकिन चौदह साल बाद भी मील नही लग सका है। वर्ष 2006 में चीनी मील लगाने की कवायद शुरु हुई थी। जबकि 2016 में धामपुर सुगर मिल लगाने की घोषणा से किसानों में खुशी देखी गयी थी। बताया जाता है कि मधुबन पंचायत स्थित तीनटेंगा गांव के समीप तत्कालीन मंत्री डॉ. रेणु कुमारी कुशवाहा के पहल पर बीते वर्ष 2006 में धामपुर चीनी मिल लगाने की घोषणा की गई थी। इसके बाद बीते 30 जुलाई 2016 को बिहार सरकार के तत्कालीन गन्ना विकास राज्य मंत्री नीतीश मिश्रा, पूर्व मंत्री डॉ. रेणू कुमारी कुशवाहा,नरेंद्र नारायण यादव, धामपुर सुगर मिल के संस्थापक विजय गोयल के साथ यहां पहुंचकर मिट्टी का जांच कृषि विभाग द्वारा करवाया गया। यहां की मिट्टी गन्ने खेती के लिए उपयुक्त पाया गया। इसलिए भूमि सर्वेक्षण कर चीनी मिल लगाने पर सहमति दी गई थी।

तस्वीर : मधुबन गांव में वर्षों से बन्द पड़ा चीनी मिल

भूमि अधिग्रहण के पेंच में लगा ग्रहण : धामपुर सुगर मिल के लिए तीन सौ एकड़ से अधिक भूमि अधिग्रहण करना था। इसके लिए उदाकिशुनगंज अनुमंडल के बिहारीगंज स्थित जवाहर चौक के पास किराये के एक निजी मकान में वर्ष 2007 में धामपुर सुगर मिल का कार्यालय खोला गया था। बताया जाता है कि सुगर मिल के लिए बिहारीगंज के गमैल और मधुबन तिनटेंगा मौजा के दो सौ अस्सी एकड़ भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया कर ली गई थी। लेकिन अधिकांश भूमि पर किसानों का वर्षो से कब्जा रहने और मामला उच्च न्यायालय में जाने की वजह से भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पर ग्रहण लग गया। इस कारण धामपुर चीनी मिल के संस्थापक मिल लगाने से पीछे हट गए। साथ ही आनन-फानन में बिहारीगंज कार्यालय बंद करा दिया गया। इस वजह से सुगर मिल खोलने की प्रक्रिया पर ग्रहण भी लग गया।

बनबनखी मिल बंद होने से गुम हुआ गन्ने की मिठास : ज्ञात हो कि सीमावर्ती पूर्णिया जिले के बनमनखी में 1970 से 1990 तक चीनी मिल संचालित रहने से किसानों को गन्ने बेचने में भी आसानी होती थी। लेकिन वर्ष 1990 में चीनी मिल में घाटा होने की बात कह बंद कर दिया था। उसके बाद किसानों को नुकसान होने लगा। कुछ वर्षों से गन्ने की खेती के लिए मौसम के प्रतिकूल असर की वजह से अन्नदाताओं की कड़ी मेहनत एवं सरकारी उपेक्षा के कारण घाटा उठाने की वजह से गन्ने की खेती प्रभावित होने लगी। वहीं इस क्षेत्र में चीनी मिल नहीं रहने के कारण गन्ने की खेती से किसान पीछे हटने लगे।

आमदनी का जरिया हो गया समाप्त : मधुबन गांव के दशरथ मेहरा ने बताया कि यहां के किसानों की मुख्य फसल गन्ना थी। उससे उन्हें एकमुश्त नगदी की आमदनी होती थी, जो उनकी अर्थ व्यवस्था का आघार था। किसान घर बनाने से लेकर शादी-विवाह तक इस आमदनी से करते थे। मिल बंद होने के बाद अब किसानों के पास पारंपरिक खेती के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अब तो अधिकत्तर किसानों ने इनकी खेती करना ही छोड़ दिया है। सत्यनारायण मेहता का कहना है कि मिल बंद होने से किसानों का नगदी फसल का जरिया समाप्त हो गया है। एक बार गन्ना लगाने से दो वर्ष तक उससे उपज मिलती थी, जिससे किसानों को समय व साधन बचत होती थी और अच्छी नगद आमदनी हो जाती थी। किसानों की आमदनी का बड़ा श्रोत अब समाप्त हो गया है। संजय सिंह ने बताया कि घोषणा होने के बाद कुछ आस जगी थी कि अब हमलोगों को नगदी फसल का उचित दाम मिलेगा। लेकिन, इतने वर्ष बीतने के बाद भी मिल चालू नहीं हुआ, जिससे किसानों के मंसूबे पर पानी फेर दिया। प्रीतम मंडल ने कहा कि बीच बीच में किसानों को कई बार प्रशिक्षण भी दिया गया लेकिन चीनी मिल नहीं होने के कारण यह प्रशिक्षण भी नाकाम साबित होता रहा।

स्थानीय किसान उमाशंकर मेहता, यसवंत कुमार, मिथिलेश कुमार मेहता, प्रभाष कुमार मेहता, सिकन्दर सिंह, सीताराम मंडल, प्रियरंजन मंडल, पृथ्वीचंद्र मंडल, अर्जुन पंडित, राजकिशोर पंडित, विश्वनाथ पंडित, शंकर दास, राजेन्द्र दास, बिरेंदर दास, भागवत मेहता, जयकांत मेहता, उमेश मेहता, प्रेमजीत कुशवाहा आदि ने बताया कि अब भी मिल खुल जाने से गन्ने की खेती बृहद पैमाने पर की जा सकती है।


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