मधेपुरा : आर्थिक तंगी से कराहने लगे हैं निजी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक एवं कर्मचारी – किशोर

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अमित कुमार अंशु
उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : कोविड19 की महामारी झेल रहे पूरे विष्व में सबसे अधिक प्रभावित शिक्षण संस्थान हुआ है, शिक्षण संस्थान से जुड़े लाखों लोग भूखमरी एवं आर्थिक तंगी की चपेट में है, जिले के लगभग पांच सौ निजी विद्यालयों में कार्यरत लगभग 10 हजार शिक्षक एवं अन्य कर्मचारी अब आर्थिक तंगी से कराहने लगे हैं, परिवार में भूखमरी की समस्या आ गयी है।  मार्च महीना में लगे लाॅकडाउन के समय यह मालूम नहीं था कि यह इतना लंबा चलेगा, इसकी कोई पूर्व तैयारी निजी विद्यालयों के संचालक एवं कर्मचारीयों ने नहीं कर रखा था।

 उक्त बातें मंगलवार को जिला मुख्यालय स्थित दार्जिलिंग पब्लिक स्कूल में प्रेस वार्ता के दौरान प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष किशोर कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि निजी विद्यालय संचालक अपने पूर्व घोषित केलेंडर के अनुसार व्हाट्सअप ग्रुप, यू-ट्यूब, जूम-एप के माध्यम से पढ़ाई प्रारंभ की गई,  शिक्षक भी इस आशा में थे कि जल्द ही इस महामारी से मुक्ति मिल जायेगी एवं अभिभावकों के द्वारा स्कूल फीस जमा किया जायेगा, लेकिन यह सब मुंगेरीलाल का हसीन सपना बन कर रह गया, सरकार के द्वारा स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं होने की वजह से अभिभावक भी स्कूल फीस देने में कोताही बरत रहे हैं।

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निजी विद्यालयों एवं कोचिंग संचालकों को सरकार के द्वारा नहीं मिलता है कोई मदद  : जिलाध्यक्ष किशोर कुमार ने कहा कि जहां तक जिले में ऑनलाइन क्लास के नाम पर फीस की बात है, यह मांग जायज है। हम लोग अप्रैल से ही बच्चों को इससे लाभान्वित कर रहे हैं, कम से कम उन्हें मुख्य विषयों की पढ़ाई करवाई गई है, जहां तक मुझे जानकारी है अभिभावकों से फीस के लिये निजी विद्यालयों एवं कोचिंग संचालकों का आग्रह होता है, लेकिन एक परसेंट भी अभिभावकों ने स्कूल फीस जमा नहीं करवाया है। उन्होंने कहा कि विद्यालय में मूल्यतः तीन प्रकार के अभिभावक होते हैं पहला जो सरकारी सेवा में कार्यरत हैं। दूसरा व्यवसाय वर्ग के लोग एवं तीसरा किसान एवं मजदूर वर्ग के लोग हैं। पहले वर्ग के जो अभिभावक हैं, उसे सरकार के द्वारा प्रत्येक महीना वेतन मिल रहा है, चाहे वह कार्यालय गए हो या नहीं, तो क्या इस वर्ग से जुड़े लोगों को विद्यालय का ट्यूशन फी जमा नहीं करना चाहिए।  परेशानी दूसरे वर्ग के लोगों को दो महीने रहा, अब सभी प्रकार का व्यवसाय कम-ज्यादा चलने लगा है, तीसरे वर्ग के लोग जो किसान एवं मजदूर हैं, किसान का सभी कार्य समय पर हो रहा है, इस वर्ग के अभिभावक फसल उपजाने के बाद ही विद्यालय फीस जमा करते थे, शायद इन्हें भी परेशानी नहीं होनी चाहिये। निजी विद्यालयों एवं कोचिंग संचालकों को सरकार के द्वारा आंतरिक एवं बाह्य रूप से विकसित करने के लिये किसी भी प्रकार का मदद नहीं दिया जाता है।

मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर एक वर्ष के लिये आर्थिक सहायता की मांग : मौके पर उपस्थित  प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन की जिला सचिव चंद्रिका यादव ने कहा कि निजी विद्यालय संचालक सरकार से मांग करते हैं कि सरकार के द्वारा 20 लाख करोड़ आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई है तो इसमें शिक्षित बेरोजगार के द्वारा संचालित निजी विद्यालयों एवं कोचिंग संचालकों के लिये क्या प्रावधान किया गया है, उस आर्थिक पैकेज से हमें मदद किया जाय। हमलोग इस लाकडाउन अवधि का कोई भी फीस अभिभावकों से नहीं लेंगे।, यदि अभिभावक सहमत हैं तो अपने-अपने विद्यालयों में एवं कोचिंग संस्थानों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर इस मुहिम को सफल बनावें।

 उन्होंने कहा कि प्राईवेट स्कूल्स एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद ने लाकडाउन एवं कोरोना वायरस महामारी के कारण प्राईवेट स्कूलों के सामने आई समस्याओं की जानकारी देते हुये मुख्यमंत्री से एक वर्ष की विशेष आर्थिक सहायता की मांग की है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद के नेतृत्व में पूरे प्रदेश में एसोसिएशन से जुड़े 25 हजार निजी विद्यालय के संचालक एवं शिक्षक एक लाख पत्र मुख्यमंत्री को भेजेंगे एवं प्राईवेट स्कूलों, कर्मचारियों एवं उनसे जुड़े लगभग दस लाख परिजनों के सामने उत्पन्न कठिनाईयों व परेशानियों से अवगत करायेंगे।

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शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों को वेतन दे पाना अब असंभव : प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश संयुक्त सचिव अखिलेंद्र कुमार अनिल ने कहा कि प्राईवेट विद्यालयों को सुचारू रूप से चलाने के लिये शिक्षण शुल्क ही एकमात्र साधन है। मार्च महीने से लॉकडाउन के कारण एवं अभिभावकों की आर्थिक स्थिति भी खराब होने से सभी विद्यालयों में शिक्षण शुल्क का संग्रह नहीं हो पाया है, जिसके कारण शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों को वेतन दे पाना अब असंभव हो गया है।  इस स्थिति में भी शिक्षक कड़ी मेहनत करके ऑनलाइन शिक्षा दे रहे हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई बाधित ना हो. उन्होंने कहा कि वेतन के अतिरिक्त हर विद्यालय के अन्य आवश्यक मासिक खर्चे भी हैं। बिल्डिंग का किराया, बैंक के लोन की मासिक किस्त, मेंटेनेंस, गाड़ियों की ईएमआई, बिजली का बिल समेत अन्य टैक्स, जिसमें कोई छूट नहीं दी गई है, इसके कारण प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधक, शिक्षक एवं कर्मचारी अत्यंत मानसिक तनाव में हैं, जो बेहद जानलेवा है। अगर तुरंत आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी तो अब तक लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं एवं आने वाले दिनों में बचे हुये लोग भी बेरोजगार हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद ने मुख्यमंत्री से विशेष आग्रह किया है कि ट्रांसपोर्ट पर लगने वाले विभिन्न प्रकार के टैक्स को माफ़ किया जाय एवं इएमआई पर लगने वाले ब्याज को नहीं लिया जाय।

 सरकारी स्कूलों में प्रति बच्चा प्रतिमाह खर्च के आधार पर प्रत्येक प्राइवेट स्कूलों को उसके बच्चों की संख्या अनुसार विद्यालय अकाउंट में एक वर्ष का विशेष आर्थिक सहायता ट्रांसफर करने का प्रावधान बनाया जाय एवं पैसा तुरंत ट्रांसफर किया जाय ताकि सभी शिक्षकों एवं कर्मियों को वेतन दिया जा सके।  मधेपुरा प्रदेश संयुक्त सचिव ने कहा कि सरकार की ओर से कोई दिशानिर्देश ना होने की वजह से अभिभावकों एवं विद्यालय के बीच तनाव की स्थिति उतपन्न हो रही है, इस पर सरकार को अविलंब दिशा निर्देश देने की जरूरत है।

 मौके पर संयोजक चिरामणी प्रसाद यादव, जिला प्रवक्ता मानव कुमार सिंह, कोषाध्यक्ष अमरेंद्र कुमार सिन्हा, सदर प्रखंड सचिव अबु जफर, सुशील शांडिल्य, श्यामल कुमार सुमित्र, गजेंद्र कुमार, रूपेश कुमार, राजेश कुमार राजु, सुरेश कुमार भारती, निक्कु निरज, मनोज कुमार, कुंदन कुमार, अमृत कुमार, अमोद कुमार, राजू खान, भवेश चंद्र मौजूद थे।


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