किसानों का दर्द : लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं मंजौरा गांव के सब्जी किसान

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कौनैन बशीर
वरीय उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : लॉकडाउन की वजह से अभी भी कई जगहों पर किसानों को मंडियों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है। कई दशक पूर्व गांव देहातों मे लोगों द्वारा कहने सुनने को मिलता था कि “नौकरी करो तो सरकारी और खेती करो तो तरकारी” वही इन बातों को बहुत लोगों ने अपनाया, इसी शब्दों का उच्चारण करते हुए उदाकिशुनगंज अनुमंडल के मंजौरा गांव में सब्जी की खेती का बड़ा हब बना हुआ है।

स्थानीय किसानों के बूते यहां की उत्पादित सब्जी बिहार के विभिन्न जिलों तक भेजी जाती थी। लेकिन लॉकडाउन अवधि में वाहनों एवं रेल का परिचालन थम जाने के बाद उत्पादित सब्जी की खपत एक बड़ी समस्या बन चुकी है। वही लगातार मंजौरा गाँव के किसान नई दृष्टि से खेती में अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर करने में लगे हैं। यहाँ की लगभग आधी से अधिक आबादी सब्जी की खेती करते हैं। किसान नई पद्धति के अनुरूप अपने खेतों में भिंडी, कद्दू, गोभी, मिर्च, बैगन, खीरा, करैला तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियां उपजाते हैं। यहाँ के किसान कई वर्षों से सब्जी की खेती करते आ रहें हैं। जिससे लोगों को आमदनी नगद के रूप में मिलने से जीविकोपार्जन, आर्थिक सुधार के साथ गृहस्थ विकास भी सुदृढ़ बनता जा रहा है। भूमि उपजाऊ होने के कारण फसल उत्पादन की क्षमता अच्छी रहती है।

 कई लोगों ने बताया कि यहाँ की भूमि की गुणवत्ता की जाँच कई वर्षों से नहीं हो पाई है, जिससे कुछ किसानों के खेतों की पैदावार घटने लगी है। जहाँ प्रति कट्ठे पाँच क्विंटल उपज होते थे वो अब दो से तीन क्विंटल रह गए हैं। उक्त किसानों के अनुसार यहाँ लगभग एक हजार बीघा से भी अधिक भूमि में केवल सब्जियां उपजाई जाती है। ये स्वतः और व्यापारियों के माध्यम से फसल को बेचा करते हैं। लेकिन इस बार लॉकडाउन और आधी बरसात के कारण कई बीघों की फसल नष्ट हो चुकी है। कई दुकानों में फसलों को बचाने के लिए कीटाणुनाशक दवाई उपलब्ध नहीं है, तो वही कुछ दुकानों में कीटाणुनाशक दवाई मिल भी रही है तो दुकानदार मनचाहे पैसे किसानों से वसूल रहें हैं। जिससे लागत मूल्य में इजाफा हो रहा है। लागत मूल्य प्राप्त करने के लिए किसान स्वतः ही बाजारों में सब्जियां बेचने लगे हैं। आधुनिकता के इस समय में भी इन लोगों को उन्नत उपकरण नहीं मिल पा रहें हैं।

कोरोना संक्रमण के चलते इस वर्ष लग्न और शादी विवाह का मुहूर्त भी खत्म हो गया है। इससे सब्जी खपत की बड़ी संभावना भी नहीं बची है। ऐसे में किसानों के उत्पादित सब्जी को बाजार तो दूर ग्राहक भी नहीं मिल रहे हैं। किसानों को अपनी मेहनत का लाभ नहीं मिल रहा है। स्थानीय बाजार के भरोसे ही किसान जिदा हैं जहां उचित भाव भी नहीं मिल रहा है।

 फिलहाल स्थिति यह है कि ऊंची कीमत पर पट्टे पर खेती करने वाले किसान खेत से अपनी लागत खर्च भी निकालने में मुश्किल झेल रहे हैं। सब्जी की खेती में खेत की सामान्य पट्टा प्रति बीघा 20 हजार रुपये है। जबकि, खेती के लिए महंगे बीज, खाद और कीटनाशक दवा के अलावा मजदूरी और अपना मुनाफा अलग है।

किसानों से बातचीत : स्थानीय किसान चमकलाल मंडल ने बताया कि लॉकडाउन होने के कारण बहुत कम व्यापारी खेतों पर आ पाते हैं। फसल खराब ना हो इसके लिए लागत मूल्य से भी कम कीमत में सब्जियां बेचने पड़ रहे हैं। राजकिशोर मंडल ने बताया कि एक तो करौना वायरस के कारण लोकडॉन चल रहा है, वही इस बार अधिक आंधी बारिश होने के कारण फसल में कीड़े लग गए हैं। जिससे व्यापारी भाव नहीं लगाते है, जबकि दुकानदारों द्वारा कीटाणुनाशक के अधिक मूल्य भी ले रहें हैं। जिससे हम लोगों के बीच समस्या उत्पन्न हो गई है। राजेश कुमार कहते हैं कि इस वर्ष लग्न पर ब्रेक लग जाने तथा बाहर में सब्जी की खपत नहीं होने से खेत से लागत खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। किसानों की परेशानी को सरकार और प्रशासन को समझना होगा। इतना ही नहीं उत्पादित सब्जी को सड़क किनारे फेंकने की नौबत आ गई है। जिला प्रशासन को चाहिए कि तत्काल हस्तक्षेप कर स्थिति को संभालें, वरना किसानों की कमर टूटते देर नहीं लगेगी।

किसान सलाहकार
वैद्यनाथ सिंह

क्या कहते हैं अधिकारी : मंजौरा पंचायत के किसान सलाहकार वैद्यनाथ सिंह ने बताया कि लगातार हो रही आंधी और बारिश से कुछ किसानों का फसल काफी क्षति हुई हैं। जिनके लिए सरकार और कृषि विभाग सम्मलित रूप से किसानों को प्रति हेक्टेयर तेरह हजार रुपये देने का प्रावधान किया गया है। इसके लिए किसानों को स्वतः ऑनलाइन माध्यम द्वारा आवेदन देना होगा।

उन्होंने बताया कि फसल छति के आवेदन की तिथि 7 मई से 25 मई तक है। जिसका सत्यापन मेरे द्वारा ही किया जाना है।


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