अनदेखी : कबाड़ के भाव बिक जायेगा सात करोड़ में बना मधेपुरा स्लीपर फैक्ट्री कारखाना

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मधेपुरा में 11 साल पहले बना रेल स्लीपर कारखाना में अब तक नहीं शुरू हुआ काम

♦ 11 वर्ष पहले सात करोड़ की राशि से बन कर हुआ तैयार अब तक है उद्घाटन का इंतजार  

♦ कबाड़ के भाव बिक जायेगा सात करोड़ में बना मधेपुरा स्लीपर फैक्ट्री कारखाना

♦ तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने संसदीय क्षेत्र मधेपुरा को दी थी सौगात 

♦ कारखाना निर्माण होने के बावजूद रेल प्रशासन स्लीपर कारखाना को नहीं करा सका चालू

♦ वर्ष 2009 में उदघाटन की हुई थी घोषणा पर आचार संहिता लग जाने के कारण नहीं हो पाया इसके बाद उपेक्षित ही रह गया

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अमित कुमार अंशु
उप संपादक

मधेपुरा/बिहार : बड़ी मुश्किल से किसी पिछड़े इलाके को एक अदद फैक्टी नसीब होती है। इस उम्मीद से कि दिन बहुरेंगे, रोजगार की संभावनाएं बढ़ेगी और बाजार का विस्तार होगा तो लोगों का आर्थिक विकास होगा। लेकिन मधेपुरा की यह बदनसीबी कही जायेगी कि वर्ष 2009 में तैयार हुई रेलवे की स्लीपर फैक्ट्री को अब कबाड़ के तौर पर बेच दिया जाएगा। रेलवे के लिए मधेपुरा में बनी यह स्लीपर फैक्ट्री उनके किसी काम की नहीं।

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विगत 11 वर्ष में फैक्ट्री में लगे संयत्र जंग खा कर बेकार हो चले हैं। इतने वर्ष बाद रेलवे इस फैक्ट्री को उपयोग में नहीं ला सकी। जानकारों के अनुसार रेलवे ने अब तक इस फैक्ट्री में उत्पादन के लिए चार बार टेंडर निकाला था, लेकिन कोई संवेदक ने इसमें दिलचस्पी ही नहीं दिखायी। अब भविष्य में इस कारखाना का उपयेाग करने की रेलवे की कोई मंशा भी नहीं है। इसमें हैरत नहीं कि रेलवे इस फैक्ट्री को कबाड़ में बेचने की योजना बना ले।

करोड़ों की लागत से लगी मशीन में लग गई है जंग मधेपुरा शहर में स्लीपर फैक्ट्री विगत 11 साल से अपने उद्धारक की बाट जोह रही है। स्थिति यह है कि अब इस फैक्टरी के परिसर में जंगल उग गये हैं। इतना ही नहीं करोड़ों की लागत से लगी मशीन में जंग लग गया है। इस ओर किसी की नजर नहीं है। तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने जिलेवासियों को यह तोहफा दिया था। शहर के दक्षिण पूर्व दिशा में रेलवे ट्रैक के नीचे लगायी जाने वाली कंक्रीट स्लीपर बनाने की फैक्ट्री बन कर तैयार थी, लेकिन अब मशीनों को जंग खाने लगी है। करोड़ों की लागत से बनी इस फैक्ट्री को उपयोग में नहीं लाये जाने के कारण जनता की गाढ़ी कमाई से बनी यह फैक्ट्री बेकार हो रही है। अगर इस फैक्ट्री को चालू किया जाये तो मधेपुरा की अर्थव्यवस्था में चढ़ाव आयेगा। इस दिशा में भी पहल किये जाने की भी जरूरत है।

चार बार टेंडर निकला, लेकिन नहीं मिला संवेदक मधेपुरा में कंक्रीट रेल स्लीपर कारखाना को चलाने के लिए रेलवे विभाग को संवेदक की जरूरत पड़ी। कारखाना चलाने के लिए रेलवे विभाग ने वर्ष 2012 में टेंडर निकाला। लेकिन संवेदक नहीं मिल पाया। इसकी वजह यह बताया गया कि रेलवे जिस दर पर यहां उत्पादित स्लीपर खरीदने को तैयार थी वह कम था। इसके कारण इस घोर घाटे के सौदे के लिए कोई संवेदक तैयार नहीं हुआ। दरअसल यहां पर सिर्फ कंक्रीट स्लीपर का उत्पादन होता और इस उत्पादन का खरीदार एक मात्र रेलवे ही है।

सात करोड़ की राशि से बनी थी फैक्ट्री कंक्रीट स्लीपर रेल कारखाना करीब सात करोड़ की राशि से बनकर तैयार हुआ। इसमें स्लीपर उत्पादन के लिए बड़े- बड़े संयंत्र लगाये गये थे। कारखाना बनाने का जिम्मा इरकॉन कंपनी को मिला था। विभाग के एकरारनाम के आधार पर फैक्ट्री का निर्माण करा दिया गया।

क्या है स्लीपर फैक्ट्रीरेलवे ट्रैक बिछाने के लिये नीचे लोहे की पटरी के नीचे स्लीपर लगाया जाता है। पहले लकड़ी से बने स्लीपर का इस्तेमाल किया जाता था, बाद में लोहे का भी इस्तेमाल किया जाने लगा। वर्तमान में कंक्रीट से बने स्लीपर का इस्तेमाल किया जाता है।

14 साल पहले हुआ था शिलान्यासगौरतलब है कि वर्ष 2006 में मधेपुरा से सांसद बनकर तत्कालीन रेल मंत्री बने लालू प्रसाद यादव ने अपने संसदीय क्षेत्र को स्लीपर फैक्ट्री का पहला तोहफा दिया था।  जिससे कोसी क्षेत्र का सर्वागीन विकास हो सके। लालू प्रसाद यादव ने 10 दिसंबर 2006 ई. को दौरम मधेपुरा रेलवे स्टेशन पर कारखाना का शिलान्यास किया था। इसके निर्माण में तीन साल का वक्त लगा था।

तीन साल में बना था कारखाना रेल कंक्रीट स्लीपर फैक्ट्ररी वर्ष 2009 ई में ही बनकर तैयार हो गया। बताया जाता है कि वर्ष 2009 के लोक सभा चुनाव की घोषणा होने से ठीक एक दिन पहले उद्घाटन की तैयारियां की जा चुकी थी। तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव इसका उद्घाटन करते परंतु अचानक आचार संहिता लागू हो जाने के कारण उद्घाटन पर पानी फिर गया। लालू यादव के रेल मंत्री के पद से हटने के बाद कारखाना उपेक्षित रह गया। उसके बाद किसी रेलमंत्री की नजरें इनायत नहीं हुईं।

16 एकड़ में है फैक्टरीजिला मुख्यालय के रेलवे के जिस 16 एकड़ भूमि में स्लीपर कारखाना बना, उस जगह पर पहले मुखर्जी उद्यान हुआ करता था।यह जगह शीशम के वृक्षों से पटा था. लेकिन देख रेख के अभाव में शीशम के पेड़ में फफूंद रोग का प्रकोप हुआ, तो लाखों के सूखे पेड़ को आसपास के चोरों ने काट लिया। देखते ही देखते उद्यान वीरान सा पड़ गया।

अगर शुरू होती फैक्टरी, तो बेकार हाथों को मिलता काम व्यवसायी मो आतिफ ने कहा कि कारखाना को लेकर क्षेत्र के लोग इस बात को लेकर आशान्वित थे कि बेरोजगार मजदूरों को अब काम के लिए नहीं सोचना पड़ेगा। बाढ़ की विभीषिका से परेशान कोसी क्षेत्र के मजदूर वर्ग काम की तलाश में अन्य प्रदेश का रूख अखतियार कर लेते हैं। कुछ हद तक पलायन रूकता। व्यवसायी मो कामरान ने कहा कि लोग अपने घर परिवार को छोड़ कर अन्य प्रदेश में काम करते है। लेकिन फैक्ट्ररी निर्माण को लेकर मजदूरों में काफी आस जगी थी। जिले में कंक्रीट फैक्टरी के निर्माण हो जाने से अनेकों हाथों को काम मिल जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। स्थानीय युवा रवि कुमार ने कहा कि अगर कारखाना शुरू होता तो सैकड़ों मजदूरों को अनेक प्रकार की परेशानी झेल कर अन्य प्रदेश नहीं जाना पड़ता। यहीं वे अपने बच्चों का भरण पोषण कर पाते, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। स्थानीय युवा कार्तिक कुमार ने कहा कि छोटे व्यवसायी वर्ग भी अपने में फैक्टरी निर्माण को लेकर कई संभावनाएं पाल रखी थी। फैक्ट्री चलता तो रोजगार के अन्य साधन भी विकसित होते लेकिन इस फैक्ट्री के शुरू नहीं होने के कारण लोग इसे भूलने लगे हैं।


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