कलाम जयंती पर अतिथि संपादक प्रसन्ना सिंह राठौर की खास रिपोर्ट

Spread the news

शोहरत के धनी डॉ कलाम को दौलत की नहीं रही कभी चाहत

 अबुल पाकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम जिन्हें दुनिया मूलतः ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम से जानती है। विज्ञान में अपने अद्भुत देन के कारण मिसाइल मेन  और राष्ट्रपति के रूप में अपनी सहजता और कार्यकुशलता के कारण जनता के राष्ट्रपति के रूप में उनकी प्रसिद्धि जग जाहिर रही।

15 अक्टूबर 1931  रामेश्वरम शहर में एक सामान्य से नाविक परिवार में जन्म हुआ। माता पिता संग दस भाई बहनों के परिवार के संचालन के लिए आठ साल की उम्र से ही रेलवे स्टेशन पर अखबार बेचना शुरू किया। विज्ञान के प्रति लगाव के पीछे कलाम ने एस अय्यर की प्रेरणा को माना। उसी आधार पर उन्होंने अपने जीवन के लक्ष्य को तय किया। वर्ष 1962 में इसरो से जुड़कर अपने नेतृत्व में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एस एल वी – 3 बनाया । इतना ही नहीं रोहिणी नामक उपग्रह को 1980 में स्थापित कर भारत को अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बनने का सौभाग्य दिया। इसके बाद उनकी कई ऐसी देन रही जिसने भारत को विश्व पटल पर एक अलग पहचान दी। सफल न्यूक्लियर टेस्ट कर भारत को परमाणु हथियार बनाने वाले देशों की लिस्ट में जोड़ने का श्रेय भी कलाम को ही था। लंबे समय तक भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार रहे कलाम सुरक्षा के क्षेत्र में राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने के हिमायती थे। इनकी कार्यकुशलता का ही आलम था कि भारत सरकार ने इन्हे पद्मभूषण, पद्मश्री, भारत रत्न सरीखे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से उन्हें सम्मानित किया।

वर्ष 2002 में वो भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। राष्ट्रपति बनने से पहले सर्वोच्च सम्मान पाने वाले वो मात्र तीसरे भारतीय थे। संगीत व साहित्य के प्रति गहरी रुचि रखने वाले डॉ कलाम ने अपने विचारों, स्वप्न व सोच को उल्लेखित करते हुए एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिखी। जनता के राष्ट्रपति के नाम से चर्चित कलाम वीणा बजाने में गहरी रुचि रखते थे। एक ऐसा मुल्क जिसके हर नागरिक के चेहरे पर मुस्कान हो ऐसे सोच रखने वाले डॉ कलाम ताउम्र शिक्षक के रूप में सक्रिय रहे। पत्रकारों से एक मुलाकात में उन्होंने कहा भी था कि वैज्ञानिक, राष्ट्रपति के बजाय वो शिक्षक के रूप में याद किया जाना पसंद करेंगे।

छात्र – युवाओं की सर्वश्रेष्ठ पसंद रहे कलाम अक्सर कहा करते थे कि सूरज की तरह चमकने के लिए सूरज की तरह जलने का हौसला होना चाहिए । भारत के कई चर्चित विश्वविद्यालयों सहित विभिन्न संस्थाओं में उन्होंने शिक्षक के रूप में सेवा दी। अपने हेयर स्टाइल के लिए खासा चर्चित कलाम सादगी पूर्ण जीवन के पर्याय रहे । उनके पास अपना कुछ खास नहीं था। राष्ट्रपति बनने के बाद वो दूसरे के द्वारा दिए मकान में ही रहते थे। शोहरत के धनी कलाम को दौलत की कोई लालसा नहीं रही। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत को सिरमौर के रूप में स्थापित करना डॉ कलाम का स्वप्न था। राष्ट्रपति से हटने के बाद वो पूर्णतः सामाजिक जीवन में रम गए थे। बच्चों के प्रति उनका खासा लगाव हमेशा चर्चा का विषय रहा। बच्चों की टोली उन्हें बहुत पसंद थी, बच्चों से बातें करना उनके सपने व विचारों को जानना तो मानो उन्हें बहुत पसंद था। शायद यही कारण था कि उन्हें  बच्चों के बीच काका के निक नेम से जाना जाता है।

इस्लाम धर्म से आने वाले कलाम सभी धर्मों को बड़े सम्मान से देखते थे। मुसलमान होने के बाद भी उनका शाकाहारी होना, कुरान के साथ गीता का नियमित अध्ययन, छोटे से छोटे लोगों से भी बड़े प्यार से मिलने की उनकी अदा हमेशा लोगों को आकर्षित करती रही। कलाम के जन्मदिन को स्विटजरलैंड  में विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत सहित विश्व की दर्जनों विश्वविद्यालयों ने अलग अलग मानद उपाधि से उन्हें सम्मानित भी किया। वर्ष 2011 में कलाम के जीवन से प्रभावित होकर ‘आई एम् कलाम’ नामक  फिल्म  भी आईं।

वो हमेशा मानते थे कि राष्ट्र  विकसित तभी होगा जब युवा प्रयास करेंगे। बिहार के प्रति हमेशा उनकी सकारात्मक सोच रही । कई अवसरों पर उनका बिहार आगमन भी हुआ। बिहार में खासकर  नालन्दा विश्वविद्यालय को लेकर उनकी दिलचस्पी काफी रही। पुस्तकों को वो अन्धकार से उजाले कि ओर ले जाने वाला शस्त्र मानते थे। उनका मानना था कि समाज में कोई भी बड़ा बदलाव संभव है, इसके लिए  माता पिता और शिक्षक के प्रयास ही काफी हैं। डॉ कलाम अपने विचारों के साथ लगातार सक्रिय थे, देश को और आगे ले जाने को प्रयासरत थे, इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि शिलांग में लेक्चर देते समय डॉ कलाम को हार्ट अटैक आया और जब तक कोई कुछ समझता तब उन्होंने इस जहां से विदा ले ली। पूरा भारत सन्न रह गया । कोई विश्वास करने को तैयार नहीं था कि भारत रत्न …जनता के राष्ट्रपति डॉ कलाम नहीं रहे। मानों पूरा भारत थम सा गया था। ऐसा लग रहा था भारत की विश्वमंच पर  अपनी पहचान लुप्त सी हो गई हो ।

तत्कालीन राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल तोड़ उन्हें श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र की कभी पूरी न होने वाली क्षति बताया। सच तो यह भी था कि कलाम के जाने के बाद जन जन रोया था। हर किसी की आंखे नम थी। अमेरिकी राष्ट्रपति  ओबामा ने उन्हें विज्ञान धरोहर कह नमन किया तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उनके निधन को एक सितारे का अंत बताया। भारत सहित विश्व के कई देशों में उनके सम्मान में राष्ट्रीय शोक  की घोषणा की गई। निसंदेह आज डॉ कलाम का शरीर हमारे बीच नहीं है लेकिन भारतीय धरोहर लता मंगेशकर के शब्दों में   उनके विचार पीढ़ी दर पीढ़ी राष्ट्र के नागरिकों में विकास और बदलाव का अलख जगाते हुए अपने मौजूदगी का अहसास देगा।

आइए हम सब देश से घृणा, नफरत को दूर कर कलाम के सपने और संकल्प का राष्ट्र बनाए। कलाम की जयंती पर शत शत नमन

प्रसन्ना सिंह “राठौर”
अतिथि संपादक

Spread the news