अपने ही घर में बेगाने हुए कीर्ति बाबू, जयंती पर भी महाविद्यालय परिवार ने कीर्ति बाबू को याद करना नहीं समझा जरूरी

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प्रसन्ना सिंह “राठौर”
अतिथि संपादक

मधेपुरा/बिहार : कोसी को उच्च शिक्षा में समृद्ध बनाने में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले इस धरा के लाल स्मृति शेष कीर्ति नारायण मंडल को उनकी जयंती के मौके पर भी पार्वती विज्ञान महाविद्यालय में याद नहीं किया जाना दुखद है।

सनद रहे की कीर्ति बाबू के भागीरथी प्रयास का ही फल रहा कि मधेपुरा, सहरसा, सुपौल सहित आसपास के जिलों में कई कॉलेजों की स्थापना हुई । अपने जीवन काल में उन्होंने परिवाद को बिना कोई लाभ पहुंचाए शिक्षा के क्षेत्र में वो मुकाम समाज को दिया जिसकी आज मात्र उपमा दी जा सकती है उसे छूना या पार करना अकल्पनीय है। सच्चे अर्थों में अगर कहा जाए की शिक्षा के क्षेत्र में मधेपुरा सहित कोसी आज जो कुछ भी है उसका श्रेय मात्र और मात्र कीर्ति बाबू को जाता है। उनके किए प्रयास से यह क्षेत्र शिक्षा के क्षेत्र में सिर्फ एक केंद्र ही नहीं बना हुआ है बल्कि पूरी प्रक्रिया से जुड़े एक बड़े समुदाय के घर का दाना पानी भी चलता है। एक ऐसा शख्स जिसकी एक नहीं कई उपमाएं है उनकी जयंती के दिन भी उन्हें याद नहीं करना कई सवालों को जन्म देता है।

अपने जीवन के आखिरी दौर तक समाज को समर्पित रहे कीर्ति बाबू की कुटिया महाविद्यालय परिसर में ही थी,और जब उनका देहांत हुआ था तब एक ओर जहां उनके बेटे ने उनके गांव में अंतिम संस्कार की बात कही थी तब टी पी कॉलेज और पी एस कॉलेज प्रशासन अपने अपने परिसर में उनकी अंतिम संस्कार को ले आमने सामने हो गए थे। मानो कबीर के अंतिम संस्कार के समय उत्पन हालात हो। उनके गुजरने के बाद कुछ समय तक उनको याद करने की परम्परा रही लेकिन धीरे धीरे यह परम्परा भी दम तोड़ने लगी। अब तो आलम यह है की उनकी मां और पिता के नाम पर उन्ही के द्वारा स्थापित कॉलेजों में उनकी याद में कार्यक्रम की जरूरत तक महसूस नहीं की जाती।

वर्ष 2008 में तत्कालीन प्राचार्य के प्रयास से महाविद्यालय परिसर में कीर्ति बाबू के स्मारक का अनावरण तत्कालीन बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष डॉ ए के पी यादव के द्वारा किया गया।उसके बाद कुछ समय तक उनसे जुड़े कार्यक्रम होते रहे फिर धीरे यह कारवां मन्द पड़ता चला गया।अब हालात यह है की जिस परिसर कीर्ति बाबू के सक्रिय जीवन का महत्वपूर्ण समय गुजरा उसी परिसर में उन्हें याद करने वाला कोई नहीं बचा है। मानो अपनों के बीच ही वो बेगाने से हो गए हैं। दुखद यह भी है कि विश्वविद्यालय प्रशासन भी इसको लेकर बहुत सक्रिय नहीं है। रजत जयंती के अन्तर्गत उनकी जयंती पर कार्यक्रम की चर्चा बीच के दिनों में हुई भी थी तो महत्वपूर्ण सूत्रों की माने तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह कहते हुए इसे टाल दिया कि अगर कॉलेज प्रशासन पहल करते हुए मांग करेगा तब उसपर विचार किया जा सकता है।  शायद कॉलेज प्रशासन ने मांग करना और विश्वविद्यालय प्रशासन ने पहल करना जरूरी भी नहीं समझा। अगर यही कारवां रहा तो कीर्ति बाबू की पहचान धीरे धीरे भावी पीढ़ी के मानसपटल से हटती चली जाएगी जो किसी भी स्तर से सही नहीं होगा। अभी भी वक्त है की कॉलेज प्रशासन सहित अलग – अलग सक्रिय समूह उसे अपने एजेंडे में ले और वर्तमान और भा वी पीढ़ी को उनकी महानता से अवगत कराए।

दुखद यह भी है कि इसको लेकर समाज के बीच से भी कोई मजबूत पहल कभी नहीं रही। कई छात्रों और शिक्षकों से इस सम्बन्ध में पूछे जाने पर उन्होंने जहां एक ओर उनकी जयंती नहीं मालूम होने की बात कहीं वहीं पी एस कॉलेज प्रशासन द्वारा कीर्ति बाबू की जयंती पर कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं करने को उनका अपमान भी बताया।


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