कभी इस गाँव में लड़कियां 10 -12 साल की उम्र में ही ब्याह दी जाती थीं

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अनुप ना. सिंह
स्थानीय संपादक

बिहार : जया देवी के गांव में बिजली है, पानी है, स्कूल है और लड़कियों की शादियां 10 -12 साल की उम्र में नहीं की जातीं। 2011 में इनके गांव में आखिरी बार गोलियां चली थीं। गोलियों का शोर अब थम चुका है। जया के गांव में सभी बच्चे पढ़ रहे हैं। 90 के दशक की बात है। सरादि गांव में लड़कियां 10-12 साल की उम्र में ब्याह दी जाती थीं।

जया बताती हैं : बड़ी बहन मुझसे ज्यादा सुंदर थी, दबंग उठा न ले जाएं इसलिए उसे नाना के पास कलकत्ता भेज दिया था। स्कूल जाने का सोचना पाप था। साथ वाले गांव में मैं और मेरी एक सहेली छिपकर स्कूल देखने जाते। मेरी सहेली पूरे गांव के सामने वो 10 साल की बच्ची उम्र में दुष्कर्म का शिकार हुई। मेरे पिता सातवीं पास थे, उन्होंने मुझे स्कूल छिप-छिप कर जाते देखा तो गांव में स्कूल खुलवाने के लिए अपनी जमीन भी दी। दबंगों ने उसपर भी कब्जा कर लिया, विरोध किया तो खूब पीटा। चाचा की जमीन कब्जा की।

गुस्सा नहीं आएगा क्या? आग लगती थी मन में। पर इससे पहले कि सोचने-समझने लायक होती। सन् 90 में 12 की उम्र में मेरी भी शादी हो गई। 93 में पिता गुजर गए तो अपनी तीन और डेढ़ साल की बच्ची के साथ सरादि रहने आ गई।

पति मुंबई में मजदूरी करते थे तो मना नहीं किया। एक दिन खबर मिली कि मेरी सहेली के पति को दुष्कर्म वाली घटना पता चल गई और उसे घर से बाहर निकाल दिया गया है। दवा लेने शहर की डिस्पेंसरी गई, वहां सिस्टर अजिया मिली, मैं सहमी हुई थी सिस्टर ने कारण पूछा। मैंने गांव का हाल बताया। उन्होंने कहा कि यह सब बदल जाएगा तुम अगर औरतों को इकट्ठा कर समूह बनाओ। पति ने धमकाया कि बच्चों पर ध्यान दो गांव पर नहीं, ससुराल वालों ने छोड़ने की धमकी दी। मैंने भी कह दिया तुम मुंबई में हो कोई सुंदर सी लड़की देख शादी कर लो। गांव के विकास के लिए लोगों से पांच-पांच रुपए का चंदा मांगना शुरू किया आज वो कुल ढाई करोड़ रुपए हो चुका है।

संघर्ष की बदौलत मिला मुकाम बच्चों को 7 साल की बहन के हवाले कर मैंने महिलाओं को एकजुट करने के लिए 15 दिन की ट्रेनिंग ली। फिर बारी-बारी गांव के हर घर का दरवाजा खटखटाया। औरतें दरवाजा बंद कर लेतीं। मैं वहीं धरना दे देती। चूल्हा बाहर होता था, तो मैं वहीं बैठ उनका खाना खाते हुए उनके बाहर निकलने का इंतजार करती। उनकी रसोई में घुस कर खाना बनाने लगती, उनके कपड़े धोने लगती या ढोलक पर लोक गीत सुनाने लगती। कब तक अनदेखा करते, कब तक अनसुना करते। महिलाएं बाहर आने लगीं। एक से दो, दो से तीन और एक साल में 16 गांव के अलग अलग-ग्रुप में 12-13 महिलाएं हो गईं और अब तो पुरुष भी जुड़ने लगे।


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