रमजान की अहमियत

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इस्लाम की बुनियाद 5 चीजों पर है। 1. तौहीद, (अल्लाह को एक मानना और हज़रत मुहम्मद स. को अल्लाह का नबी मानना) 2. नमाज़, 3.रोजा, 4.हज और 5. जकात

 इनमे हज और जकात तो सिर्फ अमीरों के लिए हैं, जबकि तौहीद, नमाज और रोज़ा सभी मुसलमानों पर फ़र्ज़ है।

रोजा को अरबी में सौम कहते हैं। सूरज निकलने के पहले(सेहरी) से सूरज के डूबने(इफ्तार)तक खाना पानी से ही खुद को अलग रखने का ही नाम रोजा नहीं बल्कि इस दरम्यान आँख, कान, मुँह और अपने दिल को भी बुराइयों से दूर रखना जरूरी है। सभी धर्मों में रोजा को एक खास मुकाम हासिल है और हर धर्म वाले इसे अपने अपने तरीके से रखते हैं। इसे फास्टिंग या उपवास के नाम से भी जाना जाता है।

रमजान के रोज़े की सबसे बड़ी बात ये है कि ये एक महीने के लिए होता है। भूखे रहने से दूसरों की भूख का एहसास होता है। अच्छे काम करते करते अच्छे कामों की आदत पड़ जाती है इंसान की ज़िंदगी मे बड़ा बदलाव आता है।

नोबल पुरस्कार से सम्मानित जापानी वैज्ञानिक योशी नोरी ने अपनी खोज से साबित किया है कि जो इंसान साल में 20 से 27 दिन तक 12 से 16 घंटे भूखा रहे उसे कैंसर रोग नहीं हो सकता। उन्होंने साबित किया कि जब इंसान भूखा रहता है तो कोशिकाओं में बदलाव होने शुरू हो जाते हैं। जब बाहर से भोजन नहीं मिलता तो वो खुद ही सड़े, गले, खराब और ऐसी कोशिकाओं को खाने लगती हैं जो बदन के हानिकारक हों। विज्ञान में इसे Autophagy कहते हैं। यही काम जब 4 हफ्तों तक लगातार हो तो कैंसर नहीं होता अगर कैंसर हो भी तो खत्म हो जाता है। यही बात 1974 में बेल्जियम के एक वैज्ञानिक ने भी कही थी जिसकी वजह से उन्हें सम्मानित किया गया था।

रोजा के दरम्यान पाबंदी से नमाज़ और कुरान की तिलावत के अलावा विशेष रूप से तरावीह की नमाज़ भी पढ़ी जाती है जो काफ़ी लंबी होती है। इससे शरीर की मांसपेशियों में खिंचाव पैदा होता है जिससे हड्डियों और नसों से जुड़ी बीमारियां दूर होती हैं।

दिन भर भूखे प्यासे रहने के बाद शाम में आम दिनों की तुलना में बेहतर और पोष्टिक भोजन मिलता है, जिससे नया खून बनता है और यही काम जब एक माह तक होता रहता तो इंसान का जिस्म पूरी तरह से फिट हो जाता है।

रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है पहला दस दिन रहमत का दूसरा दस दिन मगफिरत और तीसरा और आखिरी दस दिन जहन्नुम से छुटकारे का। इस आखिरी दस दिनों में 21,23,25,27 या 29 रमजान की कोई एक रात शब ए कद्र कहलाती है जो हज़ार रातों से बेहतर होती है।

इसी माह में कुरान उतारा गया। इस माह में लोग ज़्यादा से ज्यादा जकात (दान) देते हैं और नेकी का काम करते हैं क्यूंकि एक नेकी का सवाब सत्तर गुना ज्यादा मिलता है।

इस माह मे ऐसी इफ्तार पार्टी से बचें जहां सिर्फ दिखावा हो। अपने आसपास गरीबों पर नजर रखें।

लेखक – एम. आर.चिश्ती

लेखक बिहार राज्य प्रार्थना गीत -“मेरी रफ्तार पे सूरज की किरण नाज करे” के रचियता हैं।


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