जिस भाषा ने दी पहचान उन्हीं लोगों ने कर दिया सत्यानाश

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अनूप ना. सिंह
स्थानीय संपादक

भोजपुरी की मिठास इसे अन्य भाषाओं से अलग करती हैं भोजपुरी भाषा व संस्कृति समृद्ध है। भोजपुरी फिल्मों मैं इस कदर  अश्लील संवादों का इस्तेमाल करने की होड़ मची की भोजपुरी भाषा का सत्यानाश कर के रख दिया।

भोजपुरी देश की सबसे मीठी और प्राचीन भाषा में से एक है। वैसे तो यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में बोली जाती है, लेकिन देश का शायद कोई ही कोना होगा जहां भोजपुरी भाषी नहीं रहते हों। दुनिया के कई देश जैसे सूरीनाम, मॉरीसस, फिजी आदि देशों में भी भोजपुरी भाषा बोली जाती है। इनमे से कई देशों में तो भोजपुरी भाषा को काफी महत्वपूर्व स्थान मिला हुआ है,  लेकिन आज भोजपुरी भाषा में जिस कदर अश्लीलता बढ़ रही है वो काफी चिंताजनक है। यदि समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाया गया तो फिर इस भाषा को बचाना मुश्किल ही नहीं नहीं नामुमकिन हो जायेगा। हालाँकि कई बार इस बारे मे आवाज उठाई गई, लेकिन मामला ठंढे बस्ते में डाल दिया जाता है। भोजपुरी में अश्लीलता को बढ़ावा देने में सबसे अधिक योगदान यदि किसी का है तो वो है यूट्यूब और सस्ते मोबाइल का उपलब्ध होना।

आलम ये है कि तमाम गायक खुले आम अश्लील गीत गाते हैं । इस तरह भोजपुरी में अश्लीलता एक जहर के समान भोजपुरी के लिए हानिकारक हो चुकी है। लगातार भोजपुरी में बन रहे अश्लील एल्बम और कार्यक्रमों में अश्लील गाने वालों कलाकारों के कारण अब दुसरे भाषा-भाषी लोग यह समझने लगे हैं की अश्लीलता ही भोजपुरी लोक-गीत की नींव है। कोई भी सभ्य एवं सुशिक्षित व्यक्ति का परिवार के संग बाहर निकलना दूभर हो जाता है जब कहीं भोजपुरी अश्लील गाना बज रहा हो। स्थिति शर्मनाक है, दुखद है और भोजपुरी के लिए दुर्भाग्यपूर्ण भी है। सवाल यह भी उठता है की भोजपुरी में अश्लीलता जब सुनी जा रही है तो परोसी भी जा रही है। जब तक सुनने वाले रहेंगे तब तक परोसने वाले भी तैयार बैठे रहेंगे। ऐसी स्थिति में परोसने वालों पर ही रोक लगान यथोचित प्रतीत हो रहा है। इसके लिए कई प्रबुद्ध लोगों से वार्ता हो रही है और निष्कर्ष यही निकला है की अगर अश्लील कार्यक्रम पेश करने वाले या गाने वाले के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज करना पड़े तो अब दर्ज किया जाए।यू ट्यूब खोलिये तब आपको पता चले कि जो जितना नीचे गिर सकता है। उतना ही वो सुपरहिट है। इसका बस एक ही कारण है वो है म्यूजिक कम्पनीयों की आय का एक मात्र साधन, ऑनलाइन, गूगल, यू ट्यूब.. वो उसी गीत-संगीत में पैसा लगाना चाहतीं हैं जो इंटरनेट पर जल्दी-जल्दी पापुलर हो जाए।

 मारकेटिंग भी एकदम बदल गयी है.अब पहले वाली बात तो रही नहीं, अब होता क्या है कि कुछ कम्पनियां अपने आडियो या विडीयो गाना और हंगामा टाइप टॉप लेबल की वेबसाइट्स को बेच देतीं हैं। लोग उनको जितनी मात्रा में सुनते हैं, म्यूजिक कम्पनी को एक फिक्स रेट के अनुसार पैसा मिल जाता है.. लेकिन वो इतना नहीं होता कि उसमें खुद को म्यूजिक कम्पनी कहा जा सके। इस दुर्दशा में पैसा कमाने का सबसे आसान सा तरीका बचता है। आज यू ट्यूब ने घर बैठकर पैसा कमाना इतना आसान कर दिया है कि कोई भी आसानी से वीडियो बनाकर अच्छे-खासे पैसे डाइरेक्ट अपने अकाउंट में माँग सकता है। आज यदि भोजपुरी गीत-संगीत के जनक भिखारी ठाकुर,महिंदर मिसिर होते तो भोजपुरी में अश्लीलता को देखकर शायद छाती पीटते। भिखारी ठाकुर ने विमुख होती भोजपुरी संस्कृति को नया जीवन दिया। उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को सामीजिक सरोकारों के साथ ऐसा पिरोया कि अभिव्यक्ति की एक धारा भिखारी शैली जानी जाने लगी। आज भी सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार का सशक्त मंच बन कर जहाँ-तहाँ भिखारी ठाकुर के नाटकों की गूंज सुनाई पड़ ही जाती है।

बहरहाल आज जो भोजपुरी भाषा का हाल हुआ है, जिस रफ्तार से भोजपुरी अश्लीलता के दलदल में समाते जा रहा है उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ जाता है आज के भोजपुरिया गायकों और अभिनेताओं को जो कि इस भोजपुरी में व्याप्त अश्लीलता के जनकधार हैं। जिन्होंने अपने सितारे बुलंद करने के लिए भोजपुरी भाषा को कलंकित कर दिया। भोजपुरी से जो प्रेम करता है वो कभी भी नहीं चाहेगा की गौरवशाली भोजपुरी में अश्लीलता जैसे प्रदुषण व्याप्त रहे। कौन हैं ये लोग? किसके दम पर ये करते हैं? क्या इनको रोकना सरकार का काम नहीं? शायद नहीं। क्योंकि ऐसे कलाकारों को शासकवर्गीय पार्टियां अपना उम्मीदवार बनाती हैं और जीतने पर उन्हें मंत्री तक बना डालती है,लेकिन अब समय आ गया है भोजपुरी में अश्लीलता के विरुद्ध भोजपुरी प्रेमी तैयार खड़े हो जाएं । यह सही है कि भोजपुरी में अश्लीलता भोजपुरी की संस्कृति और संस्कार का हिस्सा नहीं है बल्कि कुछ स्वार्थी तत्वों की कारस्तानी है, जिसे भोजपुरी का हितैषी कदापि बर्दाश्त नहीं करता। हमे याद रखना होगा भोजपुरी से कहीं ज्यादा अश्लील दृश्य हिन्दी फिल्मों में होता है फिर भी हिन्दी फिल्मों को लोग इतनी हीन भावना से नहीं देखते हैं लेकिन भोजपुरी का नाम आते हीं लोगों की दृष्टि हीन क्यों हो जाती है। यह एक अपने आप में सवाल है? आखिर कब सुधरेगा हमारा भोजपुरी सिनेमा जगत? क्या अपने व्यवसाय के चलते लोग ऐसे हीं भोजपुरी भाषा का मान-मर्दन करते रहेंगे? आखिर कब तक होता रहेगा भोजपुरी भाषा के साथ दुव्र्यवहार?

 क्या भोजपुरी सिनेमा जगत में शीर्ष पर बैठे सुपर स्टार, निर्माता, निर्देशक, वितरक नहीं चाहते कि भोजपुरी सिनेमा जगत अपने दर्शकों को अच्छी फिल्में दे? और अगर चाहते हैं तो आखिर क्यों ऐसी वाहियात फिल्मों का निर्माण करते हैं जिसे लोग सपरिवार नहीं देख सकते? भोजपुरी फिल्मों के प्रचार-प्रसार में धड़ल्ले से लिखा जाता है कि पारिवारिक फिल्म है, लेकिन सिनेमाघर में जाने के बाद पता चलता है कि फिल्म कितनी पारिवारिक है।हम पूछते है हमारे आज के निर्माता-निर्देशक-अभिनेता-अभिनेत्रियों से कि आखिर ये लोग भोजपुरी भाषा के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं, क्यों इसके इज्जत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, क्यां सभ्य फिल्में नहीं चलती. अगर नहीं चलती तो क्यों नहीं ये लोग दर्शकों को सभ्य फिल्में देखने की आदत डालने पर मजबूर करते हैं।

कुल मिलाकर भोजपुरी का विकृत स्वरूप भोजपुरी की आत्मा को मटियामेट कर रहा है, रक्षा करनी है तो सबको एक साथ आना पड़ेगा। यदि भोजपुरी के सैकड़ों यू ट्यूब चैनल अश्लीलता परोस रहे तो उतने ही अच्छे चैनल बनाकर सबको उसे मिल जुलकर इस ऑनलाइन गन्दगी से लड़ाई लड़नी पड़ेगी। सबको मिलकर बेहतर और साफ़-सुथरा कंटेंट प्रमोट करना पड़ेगा।इस ऑनलाइन अश्लीलता के खिलाफ एक साइबर-वार छेड़ना पड़ेगा। क्योंकि आज भी अच्छा सुनने वालों की कमी नहीं है। वरना भोजपुरी तो अश्लीलता का पर्याय बन ही चुकी है। संविधान की आठवी अनुसूची में भी शामिल हो जाएगी, लेकिन फायदा क्या होगा जब भोजपुरी में भोजपुरी गायब हो जाएगी। शरीर से आत्मा ही निकल जाएगी.. और रह जायेगा मृतक शरीर के रूप में अश्लीलता, सिर्फ अश्लीलता। भोजपुरी को बचाने के लिए जितनी भी संस्थाएं हैं कुछ एक को छोड़कर अधिकांश का मकसद भोजपुरी को बचाना नहीं अपना चेहरा चमकाना है। साल में सालाना जलसा के नाम पर लाखों करोड़ों का चंदा उगाही करना ही उनका एकमात्र मकसद है जो लोग भोजपुरी का भला चाहते हैं उनके अंदर कसक है पर कुछ लोग फेसबुक पर दहाड़ छोड़कर भोजपुरी को बचाने की जगह खुद को भोजपुरी का बहुत बड़ा पोप घोषित करने लगे है। इससे भी भोजपुरी को नुकसान है। आंकड़े गवाह हैं कि भोजपुरी बोली में सबसे ज्यादा सेक्सी ‘ए ग्रेड’ सर्टिफिकेट वाली फिल्मे बनती हैं। साल 2019 में भोजपुरी की 96 फिल्मों को सेंसर बोर्ड ने पास किया। 62 से भी ज्यादा फिल्मों को ‘ए ग्रेड सर्टिफिकेट’ यानि केवल व्यस्कों के देखने लायक फिल्मों का प्रमाणपत्र दिया गया है। भोजपुरी की 96 में से 62 फिल्में केवल व्यस्कों के देखने लायक बनाई गई। भारत में हर भाषा और बोली की फिल्में बनती हैं। क्षे़त्रीय सिनेमा में सबसे ज्यादा अश्लील फिल्में भोजपुरी में ही बनती हैं। क्षेत्रीय सिनेमा में सबसे साफसुथरी फिल्में मराठी सिनेमा में बनती हैं। अश्लील सर्टिफिकेट वाली सबसे कम फिल्में मराठी सिनेमा की थी। सेंसर बोर्ड के आंकडे हिन्दी सिनेमा में बढ़ती अश्लीलता के गवाह हैं।  साल 2016-17 की अपेक्षा साल 2017-18 में ‘ए ग्रेड सर्टिफिकेट’ वाली फिल्मों की संख्या में 2 फीसदी की बढोत्तरी हुई है।

साल 2017-18 में सेंसर बोर्ड ने 1845 फिल्मों को प्रमाणित किया। उनमें से 403 को ‘ए ग्रेड सार्टिफिकेट’ केवल व्यस्कों के लिये प्रमाणपत्र दिया गया। साल 2017-18 में केवल 360 फिल्मों को ही इस तरह का ‘ए ग्रेड सर्टिफिकेट’ मिला था। फिल्मों के जानकार लोग मानते है कि ‘ए ग्रेड सर्टिफिकेट’ वाली फिल्में ज्यादा चलती हैं, इस कारण ऐसी फिल्में खूब बनने लगी हैं।

भोजपुरी और हिन्दी फिल्मों में यह चलन तेजी से बढ रहा है। सबसे खराब हालत भोजपुरी सिनेमा की है। यहां अश्लीलता वाली फिल्मों के कारण लोग यह सिनेमा परिवार के साथ देखने नहीं जाते, फिल्मों के गाने द्विअर्थी होते हैं। इसके उपर उनका फिल्माकंन बेहद भौडें तरीके से किया जाता है। भोजपुरी फिल्मों के तमाम कलाकार अश्लीलता की बहुत आलोचना करते है, इसके बाद भी वह ऐसी फिल्मों में काम करते हैं। अपने भौंडेपन के कारण ही यह फिल्में बेहद अश्लील होने लगी हैं। परेशानी की बात यह है कि ऐसी फिल्मों के खिलाफ भोजपुरी फिल्मी दुनिया के लोग चुपचाप रहते उसका हिस्सा बन जाते हैं।


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