भारत में मंदी की दस्तक – सरकार करे ये उपाय

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यहिया सिद्दीकी
मुख्य संरक्षक
द रिपब्लिकन टाइम्स

भारत में भयावह आर्थिक मंदी ने दस्तक दे दिया है । बिना तैयारी के नोटबंदी, बड़े आर्थिक घराने द्वारा बैंकों को चूना लगाना, सरकार द्वारा रिजर्व बैंक की जमा पूंजी की निकासी और अदूरदर्शी आर्थिक नीतियों के कारण देश की आर्थिक व्यवस्था अविश्वास की स्थिति में है। बाजार से बड़े नोट गायब हो चुके हैं । सरकारी सहित कई महत्वपूर्ण निजी क्षेत्र के उपक्रम ने अपनी उत्पादन क्षमता कम कर दी है । कर्मचारियों छंटनी बदस्तूर जारी है । लिहाजा वित्तीय वर्ष 2019-20 के प्रथम तिमाही में देश का जीडीपी 5% पर मुंह के बल गिरा है । यह देश के आर्थिक भविष्य के लिए काफी खतरनाक संकेत है । आने वाले समय में यह महामंदी का भी रूप ले सकता है , जिससे उबरने के लिए देश को दशकीय मेहनत करना पड़ सकता है ।
सनद रहे कि सरकार की लगातार गलतियों के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है । बिना तैयारी और आर्थिक जगत को विश्वास में लिए बगैर सरकार जिस प्रकार से धडाधड आर्थिक फैसले ले रही है उससे एक अविश्वास का माहौल बन गया है । ऐसा नहीं है कि देश दिवालिया हो गया है और सबकुछ खत्म हो चुका है । भारत के जीडीपी के पुराने आंकड़े पर गौर करेंगे तो उम्मीद की किरण साफ नजर आती है ।

10 वर्षों तक मनमोहन सिंह के कार्यकाल

2004-05,2005-06,2006-07,2007-08,2008-09,2009-10,2010-11,2011-12, 2012-13 तथा 2013-14 में देश का जीडीपी दर क्रमशः 7%, 9.5%, 9.6%, 9.3%, 6.7%, 6.7%, 8.6%, 8.9%, 5.7% 6.9% रहा था ,

जबकि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल
2014-15,2015-16,2016-17,2017-18,2018-19 में जीडीपी दर क्रमशः 7.2% , 7.5% , 7.15% , 6.6% , 5.8% रहा । उक्त आंकड़े का तुलनात्मक अध्ययन करने से पता चलता है कि मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में औसत विकास दर 7.8% था , जबकि मोदी के पिछले 5 वर्षों के कार्यकाल में देश का औसत विकास दर 7.5% पर स्थिर रहा । यूं तो उक्त आंकड़े उम्मीद बंधाते हैं , लेकिन असल चिंता अब शुरू हुई है। वित्तीय वर्ष 2019-20 के प्रथम तिमाही में जीडीपी दर गिरकर 5% पर आ टपका है । देश के आर्थिक जगत में जिस प्रकार से अविश्वास, हताशा , निराशा और मंदी दिखाई दे रहा है उससे विकास दर के और भी गिरने की आशंका है।
आशंकाओं के बीच देश में आर्थिक मंदी की खबर तेजी से फैल रही है । देशहित में आर्थिक मंदी के मुद्दे पर सभी को एकजुट होने की आवश्यकता है । यह समय राजनीति करने का नहीं है । हम कारणों की समीक्षा बाद में कर लेंगे । गलती पाए जाने पर सरकार को चुनाव में सजा देने का विकल्प खुला है , लेकिन अभी राष्ट्र की समृद्धि के लिए मिल – जुल कर काम करना होगा । इस स्थिति में पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह मुफीद हो सकते हैं । सरकार को बड़े हृदय से डाॅ सिंह से जरूर सलाह – मशविरा करना चाहिए । देशहित में किसी से कोई परहेज नहीं होना चाहिए । आर्थिक मुद्दे पर देश को राष्ट्रीय सहमति तथा सरकार की दरकार है ।


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